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कुछ न कुछ ज़रूर होता है!

कुछ न कुछ ज़रूर होता है!

कभी आंखें खाती हैं धोखा
कभी क़सूर कानों का होता है
कभी अल्फ़ाज़ों की जालसाज़ी
कभी अपना ही शुरूर होता है।

घायल होते हैं रिश्ते वहां

जहां ऐसा ही दस्तूर होता है

“यूं ही नहीं बिखरते रिश्ते”

कुछ न कुछ ज़रूर होता है!

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