घुट घुट कर जीना तो ज़िन्दग़ी नहीं होती
घुट घुट कर जीना तो ज़िन्दग़ी नहीं होती,
नफरत से सर झुकाना बन्दग़ी नहीं होती,
वो ग़ुनाह माफ़ी के लायक नहीं है,
जिसमें शामिल कोई शर्मिन्दग़ी नहीं होती ।