Posted on Leave a comment

न जाने कहाँ खो गया है?

न जाने कहाँ खो गया है?

जब किसी को मुस्कुराते देखता हूँ,
लगता है कि तुम फिर से मेरे पास आ गये हो,
ना कोई शिकवा, ना कोई शिकायत,
ना कोई परवाह, स्वच्छंद
उस खिलखिलाहट में अमृत बरसता था।
खोजता हूँ शायद उसी खिलखिलाहट में
वह मुस्कराहट
फिर से पाऊँ,


लौटकर फिर उसी बचपन को पाऊँ ।
जहाँ कभी,
बरगद के नीचे
जम जा जाया करती थी बालमण्डली,
निर्मल नीले जल में खिलते हुए कमल,
तल में उजले-उजले पत्थर,
मस्ती भरा नहाना
कागज की नाव को तैराना,
चने के खेत में अधपके चने तोड़ भूनकर
मोहन भोग लगाना।
पास ईख के खेत
गन्ने का रसास्वादन।
और फिर वही उछल कूद
मस्ती का आलम
राग अपनी धुन में गाना
वे मस्ती के दिन
वे प्यारे पल
कहाँ गए?
अब कभी जाता हूँ
बरगद के पेड़ के नीचे
बरगद का पेड़ तो वही है,
तालाब सूख गया है
हुई कैसी किससे खता है?
कमल का कोई नहीं पता है।
जाता हूँ जब खेत में
ना वहाँ चना है
ना वहाँ गन्ना है।
बाल मण्डली कहीं सो गयी है,
खेल की ऋतु खो गयी है।
कहाँ गया तुकबन्दी का लगाना,
आम की बगिया से आम का चुराना
भागता माली उसको भी सताना,
पकड़े जाने पर बहाना भी बनाना।
जो होना नहीं चाहिए था
वह हो गया है।
मेरा वाला बचपन
न जाने कहाँ खो गया है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *