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लूट गए हैं हम तो वफायें निभाने में..(Shayari)

लूट गए हैं हम तो वफायें निभाने में..

टीस बाकि है शायद दिल के किसी खाने में.
अभी तकलीफ बहोत होती है मुस्कुराने में..

वक्त के साथ सबके चेहरे बदल जाते हैं ,
डर सा लगता है अब तो दोस्त भी बनाने में..

जो न ढाला खुद को वक्त के टकसाल में,
चला है ऐसा सिक्का कब इस ज़माने में..

शमा दिया था खुदा ने रौशनी लुटाने को,
लगा दिया है उसे नशेमन जलाने में..

शहर के तौर-तरीके हमने सीखा न
लूट गए हैं हम तो वफायें निभाने में..

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