Posted on Leave a comment

अग्निपथ कविता

 अग्निपथ कविता

वृक्ष हो भले खड़े, हो घने हो बड़े, एक पत छाव की |
मांग मत, मांग मत, मांग मत ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||
तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी |

कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||
ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु स्वेद रक्त से |
लथपथ, लथपथ, लथपथ ||
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ |||

(श्री बच्चन जी को शत शत वंदन)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *