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खामोश लब हैं लेकिन , ये बोलती निगाहें

खामोश लब हैं लेकिन , ये बोलती निगाहें 

हम ऐसे हो रहे हैं , जैसे कभी नहीं थे
हँसते हैं रो रहे हैं , पल जैसे जैसे बीते

खामोश लब हैं लेकिन , ये बोलती निगाहें
पैरों के छाले रोयें , पत्थर भरी ये राहें
खुशबू तो आ रही हैं , फूलों की भी कहीं से
हम ऐसे हो रहे हैं , जैसे कभी नहीं थे
चलते ही जा रहे हैं , फलते ही जा रहे हैं
नज़रों में लेके मंजिल , बढ़ते ही जा रहे हैं
और छोर डोर का है , जो अपनी ओर खींचे
हम ऐसे हो रहे हैं , जैसे कभी नहीं थे

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