तकदीर ही हमसे खफा निकली
Chand ka kya kasur agar raat bewafa nikali,
Kuch pal thahri phir chal nikali,
Unse kya kahe vo to sache the,
चाँद का क्या कसूर अगर रात बेवफा निकली,
कुछ पल ठहरी और फिर चल निकली,
उन से क्या कहे वो तो सच्चे थे शायद,
हमारी तकदीर ही हमसे खफा निकली!