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एक नज़्म

एक नज़्म

भीड़ में भी जब कोई तुम्हें तन्हा दिखाई दे ,
सबके साथ होकर भी जब कोई अकेला दिखाई दे |
हँसते ही जिसके दिखे एक समंदर सा दर्द का ,
देख जिसे लगे इंतज़ार में एक बुत अपने खुदा के ,
जिसकी सोच समझ जैसे खोई सी लगे ,
जिसकी बातों से ख़ुद तेरी तस्वीर बने ,
बस बिना खोए एक भी पल उसे ,
मेरा नाम लेके मिल लेना ,
वो मैं ना भी हुआ तो कोई ग़म नहीं ,
वो मेरे जैसा हो जाएगा ,
मैं ना सही कोई तो तुम्हे मिल जाएगा |
और अगर याद मेरा नाम भी तब ना आए ,
तो बस अपने नाम से पुकार लेना उसे ,
यक़ीन करो वो मैं हुआ तो एक पल में
पहचान लूँगा , तुम्हे फिर तुमसे माँग लूँगा |

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