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मेरी मय्यत पे सारा जहा साथ निकला

मेरी मय्यत पे सारा जहा साथ निकला

तकलीफो का कारवाँ इतनी धूम से निकला
हर जख्म की आह पे आँखों से आँसू निकला
बदन से रूह रुखसत हो सकी ना
कहने को मेरी मय्यत पे सारा जहा साथ निकला

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इस दर्द की कोई मरहम नहीं

इस दर्द की कोई मरहम नहीं

वो हमें भूल भी जायें तो कोई गम नहीं,
जाना उनका जान जाने से भी कम नहीं,
जाने कैसे ज़ख़्म दिए हैं उसने इस दिल को,
कि हर कोई कहता है कि इस दर्द की कोई मरहम नहीं।