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न विश्वास को डिगने देना

न विश्वास को डिगने देना


न विश्वास को डिगने देना 

आत्मविश्वास का लेना संबल 

मत छोड़ना हौसला अपना 

बदलता है वक्त पल पल 

दे प्रज्वलित दिव्य चेतना खुद को 

कल्पनाओं को अपनी सत्य का रूप दे दे 

जीत जा क्षण भंगुर निराशा से 

पथ को अपने लक्ष्य का प्रारूप दे दे 

हर कदम में हो स्वाभिमान का ओज 

ले दृढ़ संकल्पित मन 

जी अपनी आशाओं को रोज 

खुद की अंतरात्मा को 

दे अलौकिक ज्ञान 

चल किसी भी दुर्गम पथ 

होगी सफलता से ही पहचान

न विश्वास को डिगने देना 

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रुके ना तू झुके ना तू (ruke na tu jhuke na tu)

                      

                                             धरा हिला, गगन गुंजा
                                              नदी बहा, पवन चला
                                            विजय तेरी , विजय तेरी
                                             ज्योती सी जल , जला

                                        भुजा भुजा, फड़क – फड़क
                                            रक्त में धड़क – धड़क
                                           धनुष उठा , प्रहार कर
                                         तु सबसे पहला वार कर 
                                           अग्नि सी धधक – धधक
                                           हिरन सी सजग – सजग
                                              सिंह सी दहाड़ कर
                                              शंख सी पुकार कर

                                              रुके न तू , थके न तू
                                              झुके न तू , थमें न तू
                                              सदा चले , थके न तू
                                              रुके न तू , झुके न तू
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अपने ही मन से कुछ बोलें

अपने ही मन से कुछ बोलें

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें,
यादों की पोटली टटोलें!

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर,
खुद दरवाज़ा खोलें!

जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

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क़दम मिलाकर चलना होगा

क़दम मिलाकर चलना होगा

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।