एक आदमी मंदिर में सेवक था. उसका काम मंदिर की साफ-सफ़ाई करना था. भक्तों और श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान में से थोड़ा-बहुत उसे मंदिर के पुजारी द्वारा दे दिया जाता. इसी से उसकी गुजर-बसर चल रही थी.
वह अपनी जिंदगी से बहुत परेशान और दु:खी था. मंदिर में काम करते-करते वह दिन भर अपनी ज़िंदगी को लेकर शिकायतें करता रहता. एक दिन शिकायत करते हुये वह भगवान से बोला, “भगवान जी! आपकी ज़िंदगी कितनी आसान है. आपको बस एक जगह आराम से खड़े रहना होता है. मेरी ज़िंदगी को देखो. कितनी कठिन ज़िंदगी जी रहा हूँ मैं. दिन भर कड़ी मेहनत करता हूँ, तब कहीं दो जून की रोटी नसीब हो पाती है. काश मेरी ज़िंदगी भी आपकी तरह होती.”
उसकी बात सुनकर भगवान (God) बोले, “तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा नहीं है. मेरी जगह रहना बिल्कुल आसान नहीं है. मुझे बहुत सारी चीज़ें देखनी पड़ती है. बहुत सी व्यवस्थायें करनी पड़ती है. ये हर किसी के बस की बात नहीं है.”
“भगवान जी! कैसी बात कर रहे हैं आप? आपका काम आसान ही तो है. आपकी तरह तो मैं भी दिन भर खड़े रह सकता हूँ. इसमें कौन सी बड़ी बात है?” मंदिर का सेवक बोला.
“तुम नहीं कर पाओगे. इस काम में बहुत धैर्य की आवश्यकता पड़ती है.” भगवान बोले.
“मैं ज़रूर कर पाऊँगा. आप मुझे एक दिन अपनी ज़िंदगी जीने दीजिये. आप जैसा बतायेंगे, मैं वैसा ही करूंगा.” मंदिर का सेवक ज़िद करने लगा.
उसकी ज़िद के आगे भगवान मान गए और बोले, “ठीक है. आज पूरा दिन तुम मेरी ज़िंदगी जिओ. मैं तुम्हारी ज़िंदगी जीता हूँ. लेकिन मेरी ज़िंदगी जीने के लिए तुम्हें कुछ शर्ते माननी होगी.”
“मैं हर शर्त मानने को तैयार हूँ भगवान जी.” सेवक बोला.
“ठीक है. तो ध्यान से सुनो. मंदिर में दिन भर बहुत से लोग आयेंगे और तुमसे बहुत कुछ कहेंगे. कुछ तुम्हें अच्छा बोलेंगे, तो कुछ बुरा. तुम्हें हर किसी की बात चुपचाप एक जगह मूर्ति की तरह खड़े रहकर धैर्य के साथ सुननी है और उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है.”
सेवक मान गया. भगवान और उसने अपनी ज़िंदगी एक दिन के लिए आपस में बदल ली. सेवक भगवान की जगह मूर्ति बनकर खड़ा हो गया. भगवान मंदिर की साफ़-सफाई का काम निपटाकर वहाँ से चले गए.
कुछ समय बीतने के बाद मंदिर में एक धनी व्यापारी आया. भगवान से प्रार्थना करते हुए वह बोला, “भगवान जी! मैं एक नई फैक्ट्री डाल रहा हूँ. मुझे आशीर्वाद दीजिये कि यह फैक्ट्री अच्छी तरह चले और मैं इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाऊँ.”
प्रार्थना करने के बाद वह प्रणाम करने के लिए नीचे झुका, तो उसका बटुआ गिर गया. जब वह वहाँ से जाने लगा, तो भगवान की जगह खड़े मंदिर के सेवक का मन हुआ कि उसे बता दें कि उसका बटुआ गिर गया है. लेकिन शर्त अनुसार उसे चुप रहना था. इसलिये वह कुछ नहीं बोला और ख़ामोश खड़ा रहा.
इसके तुरंत बाद एक गरीब आदमी वहाँ आया और वो भगवान से बोला, “भगवान जी! बहुत गरीबी में जीवन काट रहा हूँ. परिवार का पेट पालना है. माँ की दवाई की व्यवस्था करनी है. समझ नहीं पा रहा हूँ कि इतना सब कैसे करूं. आज देखो, मेरे पास बस १ रुपया है. इससे मैं क्या कर पाऊंगा? आप ही कुछ चमत्कार करो और मेरे लिए धन की व्यवस्था कर दो.”
प्रार्थना करने का बाद जैसे ही वह जाने को हुआ, उसे नीचे गिरा व्यापारी का बटुआ दिखाई दिया. उसने बटुआ उठा लिया और भगवान को धन्यवाद देते हुए बोला “भगवान जी आप धन्य है. आपने मेरी प्रार्थना इतनी जल्दी सुन ली. इन पैसों से मेरा परिवार कुछ दिन भोजन कर सकता है. माँ की दवाई की भी व्यवस्था हो जाएगी.”
भगवान को धन्यवाद देकर वह वहाँ से जाने लगा. तब भगवान बने मंदिर के सेवक का मन हुआ कि उसे बता दे कि वह बटुआ तो व्यापारी का है. उसे मैंने नहीं दिया है. वह जो कर रहा है, वह चोरी है. लेकिन वह चुप रहने के लिए विवश था. इसलिए मन मारकर चुपचाप खड़ा रहा.
मंदिर में आने वाला तीसरा व्यक्ति एक नाविक था. वह १५ दिन के लिए समुद्री यात्रा पर जा रहा था. भगवान से उसने प्रार्थना की कि उसकी यात्रा सुरक्षित रहे और वह सकुशल वापस वापस आ सके.
वह प्रार्थना कर ही रहा था कि धनी व्यापारी वहाँ आ गया. वह अपने साथ पुलिस भी लेकर आया था. नाविक को देखकर वह पुलिस से बोला, “मेरे बाद ये मंदिर में आया है. ज़रुर इसने ही मेरा बटुआ चुराया होगा. आप इसे गिरफ़्तार कर लीजिये.”
पुलिस नाविक को पकड़कर ले जाने लगी. भगवान बने आदमी को अपने सामने होता हुआ ये अन्याय सहन नहीं हुआ. शर्त अनुसार उसे चुप रहना था. लेकिन उसे लगा कि बहुत गलत हो चुका है. यदि अब मैं चुप रहा, तो एक बेकुसूर आदमी को व्यर्थ में ही सजा भुगतनी पड़ेगी.
उसने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ”आप गलत व्यक्ति को पकड़ कर ले जा रहे हैं. ये बटुआ इस नाविक ने नहीं, बल्कि इसके पहले आये गरीब व्यक्ति ने चुराया है. मैं भगवान हूँ और मैंने सब देखा है.”
पुलिस भगवान की बात कैसे नहीं मानती? उनकी बात मानकर उन्होंने नाविक को छोड़ दिया और उस गरीब आदमी को पकड़ लिया, जिसने बटुआ लिया था.
शाम को जब भगवान वापस आये, तो मंदिर के सेवक ने पूरे दिन का वृतांत सुनाते हुए उन्हें गर्व के साथ बताया कि आज मैंने एक व्यक्ति के साथ अन्याय होने से रोका है. देखिये आपकी ज़िंदगी जीकर आज मैंने कितना अच्छा काम किया है.
उसकी बात सुनकर भगवान बोले, “ये तुमने क्या किया? मैंने तुमसे कहा था कि चुपचाप मूर्ति बनकर खड़े रहना. लेकिन वैसा न कर तुमने मेरी पूरी योजना पर पानी फेर दिया. उस धनी व्यापारी ने बुरे कर्मों द्वारा इतना धन कमाया है. यदि उसमें से कुछ पैसे गरीब आदमी को मिल जाते, तो उसका भला हो जाता और व्यापारी के पाप भी कुछ कम हो जाते. जिस नाविक को तुमने समुद्री यात्रा पर भेज दिया है, अब वह जीवित वापस नहीं आ पायेगा. समुद्र में बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है. यदि वह कुछ दिन जेल में रहता, तो कम से कम बच जाता.
सेवक को यह सुनकर अहसास हुआ कि वह तो बस वही देख पा रहा था, जो आँखों के सामने हो रहा था. उन सबके पीछे की वास्तविकता को वह देख ही नहीं पा रहा था. जबकि भगवान जीवन के हर पहलू पर विचार अपनी योजना बनाते हैं और लोगों के जीवन को चलाते हैं.
======================================================================
सीख (Moral Of The Story)
हम सब भी भगवान की योजनाओं को समझ नहीं पाते. जब हमारे साथ कुछ गलत हो रहा होता है या हमारे हिसाब से कुछ नहीं हो रहा होता है, तो अपना धैर्य खोकर हम भगवान को दोष देने लगते हैं. हम ये समझ नहीं पाते कि इन सबके पीछे भगवान की कोई न कोई योजना छुपी हुई होती है. ऐसे समय में हमें भगवान पर विश्वास रखकर धैर्य धारण करने की आवश्यता है. इसलिए चिंता न करें. यदि आपकी मर्ज़ी से कुछ नहीं हो रहा, तो इसका अर्थ है कि वह भगवान की मर्ज़ी से हो रहा है और भले ही देर से ही सही, भगवान की मर्ज़ी से सब अच्छा ही होता है.